TET प्रकरण सुप्रीम कोर्ट आदेश के बाद केंद्र सरकार क्या कर सकती है?

TET प्रकरण सुप्रीम कोर्ट आदेश के बाद केंद्र सरकार क्या कर सकती है? 





क्या केंद्र सरकार ऑर्डिनेंस ला सकती है?? 




हाँ — केंद्र सरकार ऑर्डिनेंस ला सकती है, पर यह सरल “फैसला पलट देना” जैसा नहीं होगा। ऑर्डिनेंस लाना संभव है, पर उसकी वैधता, सीमा और असर पर कड़ी संवैधानिक और संघीय (federal) सीमाएँ हैं। तथा वह तुरंत अगले कदम (कानून, कोर्ट चुनौती) से नॉट-सेफ नहीं होता। 


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1) कैसे और किस आधार पर ऑर्डिनेंस आता है? 

- राष्ट्रपति को संसद की छुट्टी के दौरान तत्काल कानून बनाने की शक्ति है — यह Article 123 के तहत होता है। पर ऑर्डिनेंस तभी वैध माना जाएगा जब संसद बैठे तो उसे पारित करे (ऑर्डिनेंस संसद की अगली बैठक के 6 सप्ताह के भीतर पारित होना चाहिए अन्यथा लप्स हो सकता है)।  


2) क्या केंद्र राष्ट्रीय स्तर पर टीचर्स को बचाने वाला कानून/ऑर्डिनेंस बना सकता है? — तकनीकी/कानूनी बारीकियाँ

(A) विषयगत अधिकार — क्या संसद के पास कानून बनाने का अधिकार है?  


- शिक्षा अब Concurrent List में आता है (42वाँ संशोधन से)। इसका अर्थ: केंद्र और राज्य दोनों इस विषय पर कानून बना सकते हैं। इस वजह से केंद्र सिद्धांततः शिक्षा से जुड़े नियम बना सकता है।  




(B) लेकिन—सेवा और भर्ती/Conditions of Service पर प्रश्न


- State public services / सेवाओं का प्रावधान और कुछ सेवा-शर्तें राज्य सूची (State List) में भी आती हैं (जैसे State Public Services Entry)। सेवा-शर्तों (जैसे पदोन्नति, सेवा-नियम) पर राज्य का एक मजबूत अधिकार रहता है। Article 309 भी भर्ती/सर्विस-शर्तों के विषय में लागू होता है। इसलिए केंद्र का कदम सीधे-सीधे राज्य कर्मचारियों की सभी सेवा-शर्तें बदलने में संघर्ष कर सकता है — पर अगर केंद्र एक केंद्रीय विधेयक बनाकर यही नियम बनाये और वह Concurrent विषय के दायरे में आए तो वो राज्य-कानून के साथ टकरा सकता है |


(C) टकराव होने पर क्या होता है? (Doctrine of Repugnancy / Article 254)  


- अगर केंद्र का कानून और राज्य का कानून टकराते हैं, तो सामान्य रूप से केंद्र का कानून भारी रहेगा (वह राज्य कानून को टाल देगा), पर यदि राज्य के अपने कानून को राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त है, तो वह राज्य-विशेष में लागू रह सकता है। यानी राज्यों के अधिकार और राष्ट्रपति की सहमति के कारण केंद्र का कानून हर जगह स्वतः प्रभावी नहीं रह सकता।  



3) क्या ऑर्डिनेंस सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सीधा पलट देगा?


- न्यायालय का फैसला सीधे-सीधे कोई कानून नहीं बदल देता, पर सुप्रीम कोर्ट का अंतिम शब्द संविधान पर लागू होता है। विधानमंडल (Parliament) नया कानून बना सकता है ताकि कोर्ट के कानूनी निहितार्थ बदलने का प्रयास हो — पर वह कानून भी संवैधानिकता (Constitutionality) की जांच के अधीन होगा। चीफ जस्टिस ने कई बार कहा है कि "स्थायी तौर पर निर्णय को Legislature सीधे ओवररूल नहीं कर सकती", Legislature किसी कमी को दूर करने के लिये कानून बनाये पर न्यायालय फिर जाँच करेगा।  




- मतलब: केंद्र ऑर्डिनेंस/कानून ला कर प्रभावी तौर पर स्थिति बदलने की कोशिश कर सकता है, पर यदि नया कानून/ऑर्डिनेंस संविधान के खिलाफ होगा या न्यायालय के संवैधानिक सिद्धांतों से टकराएगा तो अदालत उसे रद्द कर सकती है। 



4) रेट्रोस्पेक्टिव (पूर्व प्रभाव) छूट देना — क्या संभव है? 


- केंद्र या संसद कानून में पूर्व प्रभाव (retrospective) दे सकती है, पर यदि वह किसी के मौलिक अधिकारों/प्रतिष्ठित सेवा-हक को अनुचित रूप से छीनता है तो अदालत उसे खारिज कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछली पंक्तियों में यह कहा है कि किसी के पहले प्राप्त अधिकारों को अचानक छीनना कठिनाई पैदा कर सकता है — इसलिए अदालत रोशनी में देखेगी। (आपके भेजे हुए आज के जजमेंट में भी संक्रमणकालीन रहम दिए गए हैं)। 


5) असलियत में क्या होगा — प्रक्रिया और चुनौती 




1. केंद्र चाह कर भी ऑर्डिनेंस ला सकता है — और वह ऑर्डिनेंस तात्कालिक सुरक्षा/राहत दे सकता है (उदा. किसी तारीख से पहले नियुक्त हुए टीचर्स को वैधता/छूट देना)।  


2. पर — राज्य सरकारें, शिक्षक यूनियनों या कोई वकील तुरंत सुप्रीम कोर्ट/उच्च न्यायालय में चुनौती दायर कर देंगे। कोर्ट ऑर्डिनेंस की वैधता, संघीय अधिकारों का उल्लंघन, और प्राकृतिक न्याय पर विचार कर सकता है।  


3. राजनीतिक/व्यावहारिक बाधा — राज्यों का विरोध, राष्ट्रपति की राय, संसद में बहस — ये सब मिलकर केंद्र के उद्देश्य को कठिन बना देंगे। उदाहरण: केंद्र/राज्य दोनों ने पिछले वर्षों में ऑर्डिनेंस का उपयोग किया, पर वह विवादों का विषय भी बना (Delhi Ordinance; Telangana ordinance आदि). 


 6) निष्कर्ष — आसान भाषा में, निर्णायक बिंदु


- संभावना: केंद्र ऑर्डिनेंस ला सकता है और इससे अस्थायी तौर पर पुरानी टीचर्स को राहत दी जा सकती है।  


- सीमाएँ: यह कदम संविधान, संघीय ढांचे और राज्य-सेवाओं के अधिकारों से टकरा सकता है; अदालतों में चुनौती खड़ी होगी और कोर्ट इसे पलट भी सकती है।  


- अर्थ: हाँ — सैद्धान्तिक रूप से संभव, पर व्यवहारिक और कानूनी जोखिम बहुत बड़े हैं; ऑर्डिनेंस आसान “बचाव” नहीं बल्कि जोखिम और लड़ाइयों का कारण बनेगा। 




 7) एक शिक्षक/यूनियन — क्या करें? (प्रायोगिक सलाह) 

- TET की तैयारी शुरू रखें — यह सबसे सुरक्षित रास्ता है।   


- कानूनी विकल्पों (यूनियन, PIL, representation) पर विचार करें — समूह में चुनौती तेज़ असर डालती है। 🧑‍⚖️  


- राज्य सरकार/DEO से संपर्क करिए — तुरंत पारदर्शिता/नोटिसों का अनुरोध करें। 

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