NON-TET Case और जस्टिस दत्ता
अगर आप ध्यान से निर्णय को देखंगे तो अल्प-संख्यक संस्थानों में RTE लागू करना और इसके अलावा तमिलनाडु में ऐसे शिक्षक जिन्हें समय-समय पर TET करने की छूट दी गई थी और उनके अति-समझदारी के क़दम से निर्णय यहाँ तक पहुँचा था।
अल्प-संख्यक संस्थान
इसमें महाराष्ट्र सरकार ने Article 12 के अनुसार Central govt के Act को लेकर अल्प-संख्यक संस्थानों में नियुक्ति हेतु TET की माँग की लेकिन Supreme Court के परमाती वाले निर्णय में अल्प-संख्यक के मामले RTE लागू होने में बाधा है इसलिए इस निर्णय को seven judges बेंच में refer कर दिया है। हालाँकि यहाँ जस्टिस दत्ता ने टिप्पणी की थी अगर केवल मेरे सामने ये होता तो मैं TET mandatory लागू करता अल्प-संख्यक संस्थानों में लेकिन परमाती वाला निर्णय मेरे लिए बाधक है। आने वाले समय में अल्प-संख्यक संस्थानों में TET लागू होगी और ये निर्णय seven judges bench से affirm होगा जिसमें आधार बनेगा Article 21A । ऐसा ही कुछ तमिलनाडु में भी हुआ था तो दोनों मुद्दे बंच होकर ही आए थे।
तमिलनाडु
यहाँ कुछ शिक्षकों की नियुक्ति बिना TET के हुई थी पर T&C applied थी जो कि केंद्र सरकार ने की हुई थी कि आपको 2015 तक NCTE के मानकों के आधार पर TET करनी होगी जिसकी समय सीमा RTE section 23(2) के proviso में बढ़ाकर 2019 कर दी गई थी हालाँकि उसमें बहुत सी चीज़ें थी लेकिन जैसा पहले बताया कि अंत के para में NCTE के अनुसार लिखा गया था तो उसी को आधार मानते हुए TET पूर्व के शिक्षकों पर भी binding कर दिया गया। ये शिक्षक पदोन्नत्ति में भी TET से छूट को लेकर डिमांड करने लगे थे जिसमें मद्रास उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने NCTE के Nov/12/2014 को आधार मानते हुए जून 2023 को निर्णय दिया जो कि NCTE ने एक पत्र में Sep/11/2023 को क्लैरिफ़ाई किया कि हाँ पदोन्नत्ति में TET लागू होगी चाहे वो कभी की भी नियुक्ति हो।
WRIT A 523/2024 HIMANSHU RANA & OTHERS VS UNION OF INDIA & OTHERS के para 3 & 4 में मद्रास उच्च न्यायालय के निर्णय की findings और ये मामला सर्वोच्च न्यायालय में sub-judice होने का ज़िक्र भी है।
ये सब बातें आपको इसलिए बताई जा रही है ताकि लड़ने वाले ये जान ले कि अल्प-संख्यक संस्थानों में नियुक्ति में TET लागू करने के लिए ये भूमिका बनाई गई है अब इससे आपको कैसे बचना है ये आपके अधिवक्ताओं के ऊपर हैं।
हालाँकि मैं जानता हूँ कि जितने लोग सर्वोच्च न्यायालय गए हैं उनमें से दस फ़ीसदी लोग भी RTE, Basic Edu Service Rules, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय का अवलोकन किए हो पर ये है कि पढ़े-लिखकर केस खस तैयार किया जाता है, अधिवक्ताओं के हाथ में छोड़ दोगे तो आपका भला कभी नहीं होगा।
बाक़ी महिला मोर्चा अब संवैधानिक चीज़ों को चुनौती दे ही रहा है देवी मैय्या इनकी मदद करे कि ऐसा कुछ करने से पहले ये दस बार सोचें। 😂
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